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Showing posts from April, 2023

पिप्पलाद ऋषि और शनिदेव

पिप्पलाद ऋषि और शनिदेव क्यों पीपल के वृक्ष की पूजामात्र से ही शनि देव का प्रकोप कम हो जाता है जब श्मशान घाट में महर्षि दधीचि के शरीर का अंतिम संस्कार किया जा रहा था। उनकी पत्नी अपने पति से वियोग सहन नहीं कर सकी और पास के एक विशाल पीपल के पेड़ के खोखले में 3 साल के लड़के को रखकर खुद ही चिता में बैठकर सती हो गई। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया, लेकिन पीपल के गड्ढे में रखा बालक भूख-प्यास से बिलखने लगा। जब कुछ नहीं मिला तो वह मटके में गिरे पीपल के पेड़ की कोठियों (फलों) को खाकर बड़ा होने लगा। कालांतर में पीपल के पत्ते और फल खाकर बच्चे की जान किसी तरह सुरक्षित रही। एक दिन देवर्षि नारद वहां से गुजरे। नारद ने बालक को पीपल के कोटर में देखा और उसका परिचय पूछा। नारद- बालक तुम कौन हो? बच्चा - वही तो मैं भी जानना चाहता हूँ। नारद - तुम्हारे पिता कौन हैं ? बच्चा - वही तो मैं जानना चाहता हूँ। तब नारद ने ध्यान से देखा। नारद ने आश्चर्य चकित होकर कहा कि हे बालक! आप महादानी महर्षि दधीचि के पुत्र हैं। आपके पिता की अस्थियों से वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय प

हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या हुआ..

हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या हुआ.. इतिहास से जो पन्ने हटा दिए गए हैं उन्हें वापस संकलित करना ही होगा क्यूंकि वही हिन्दू रेजिस्टेंस और शौर्य के प्रतीक हैं. इतिहास में तो ये भी नहीं पढ़ाया गया है कि हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पांच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है. ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है. क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना.. महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सिमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है. वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध , महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था. मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर अधिपत्य जमा सके. हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं. हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे..और कुछ ही समय में मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा , उदयपुर और आसप