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My Coding Schedule

Day Mon Tue Wed Thu Fri
8-8:30 Learn
9-10 Practice
1-1:30 Play
3:45-5 Code
6-6:15 Discuss

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चीते की प्रतियोगिता कुत्तो से

चीते की प्रतियोगिता कुत्तों से हो रही थी, लोग तुलना करना चाहते थे कि कौन तेज है? सभी हैरान थे कि चीता अपनी जगह से बाहर नहीं आया। लोगों ने रेस संयोजक से पूछा कि आखिर हुआ क्या? रेस संयोजक ने प्रतिक्रिया दी, कृपया इस तस्वीर पर गौर करें। कभी-कभी यह साबित करने कोशिश करना कि आप सबसे अच्छे हैं, "एक अपमान है"। हमें दूसरों के स्तर तक नीचे जाने की जरूरत नहीं है, किसी को समझाने की आवश्यकता नहीं कि हम सबसे बेहतर हैं। गहन विचार करें, अपनी ऊर्जा को सकारात्मक प्रयासों में लगायें, वो करें जो आपके मनोनुकूल हो। चीता अपनी गति का उपयोग शिकार करने के लिए करता है, ना कि कुत्तों को यह साबित करने के लिए कि वह तेज और मजबूत है। अपना मूल्य साबित करने के लिए अपना समय और ऊर्जा बर्बाद ना करें!! लेखक:-केशव राठौर Share on WhatsApp Facebook Share

Rani Padmavati History in Hindi | वीरांगना रानी पद्मिनी की जीवनी

रानी पद्मावती पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा लिखी गई और उनके मुख से बोली गई कविता बड़ी निराली है। इस वीडियो को देखकर आप गर्वित महसूस करोगे । देखने के लिए नीचे वीडियो पर क्लिक करें👇👇👇👇👇 महारानी पद्मावती जीवनी हमारे देश में जिन वीर बालाओ ने अपने प्राणों की आहुति देकर अपने मान सम्मान की रक्षा की उनमे वीरांगना रानी पद्मिनी (Rani Padmavati) का नाम सर्वोपरि है | राजकुमारी पद्मिनी (Rani Padmavati) सिंहल द्वीप के राजा की पुत्री थी | वह बचपन से ही बड़ी सुंदर और बुद्धिमान थी | पद्मिनी जब बड़ी हुयी तो उसकी बुद्धिमानी के साथ ही उसके सौन्दर्य की चर्चे चारो तरफ होने लगे | पद्मिनी (Padmavati) का लम्बा इकहरा शरीर ,झील सी गहरी आँखे और परियो सा सुंदर रंग रूप सभी का ध्यान आकर्षित कर लेता था | स्वयंवर में हुआ रावल रतनसिंह से विवाह सिंहल द्वीप के अनेक राजपुरुष और आसपास के राजा-राजकुमार आदि पद्मिनी (Padmavati) से विवाह करने के लिए लालायित थे किन्तु सिंहल नरेश राजकुमारी पद्मिनी का विवाह किसी ऐसे व्यक्ति के साथ करना चाहते थे जो उसकी आन-बान और ...

शिष्टाचार – स्वामी विवेकानंद के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग

शिष्टाचार स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि–विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते हैं, क्योंकि उनमें समय पर साहस का संचार नही हो पाता और वे भयभीत हो उठते हैं। स्वामीजी की कही सभी बातें हमें उनके जीवन काल की घटनाओं में सजीव दिखाई देती हैं। उपरोक्त लिखे वाक्य को शिकागो की एक घटना ने सजीव कर दिया, किस तरह विपरीत परिस्थिती में भी उन्होने भारत को गौरवान्वित किया। हमें बहुत गर्व होता है कि हम इस देश के निवासी हैं जहाँ विवेकानंद जी जैसे महान संतो का मार्ग-दशर्न मिला। आज मैं आपके साथ शिकागो धर्म सम्मेलन से सम्बंधित एक छोटा सा वृत्तान्त बता रही हूँ जो भारतीय संस्कृति में समाहित शिष्टाचार की ओर इंगित करता है| 1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन चल रहा था। स्वामी विवेकानंद भी उसमें बोलने के लिए गये हुए थे।11सितंबर को स्वामी जी का व्याखान होना था। मंच पर ब्लैक बोर्ड पर लिखा हुआ था- हिन्दू धर्म – मुर्दा धर्म। कोई साधारण व्यक्ति इसे देखकर क्रोधित हो सकता था , पर स्वामी जी भला ऐसा कैसे कर सकते थे| वह बोलने के लिये खङे हुए और उन्होने सबसे पहले (...