जापान का प्रसिद्ध सेनापति नोबुनागा कम सैनिकों व थोड़े साधनों से ही अपने समर्थ विरोधियों के छक्के छुड़ा देने के लिए प्रख्यात था। वह अपने साथियों का मनोबल बढ़ाए रखने की कला में बहुत कुशल था। युद्ध सन्निकट था, लेकिन सैनिकों की संख्या काफी कम थी। युद्ध जीतना भी था। अत: सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए उसने एक तरकीब निकाली। उन्हें लेकर देवता के मंदिर में गया और सिक्के उछालकर देवता की इच्छा सिद्ध करने लगा। सिक्के चित पड़ें तो जीत, पट पड़ें तो हार समझी जानी थी। सिक्के तीन बार उछाले गए। तीनों ही बार चित पड़े।
सभी हर्ष से नाचने लगे, तालियां बजाते हुए चिल्लाने लगे कि जीत, जीत, जीत! लड़ाई लड़ी गई। चार गुनी अधिक संख्या वाली विपक्षी सेना को उन बहादुरों ने तोड़-−मरोड़कर रख दिया और विजय का डंका बजाते हुए वापस लौटे। अभिनंदन समारोह में नोबुनागा ने उसे सैनिकों की नहीं, उनके मनोबल की विजय बताया और रहस्य खोलते हुए वे सिक्के दिखाए, जो उछाले गए थे। वे इस चतुराई के साथ ढाले गए थे कि दोनों ओर वही निशान था, जो चित कहा जाता था। उन्होंने सैनिकों को समझाया कि आत्मविश्वास से बड़ी कोई शक्ति नहीं, वह असंभव को भी संभव कर दिखाती है।
अगर हमें विश्वास है कि हम कोई काम कर सकते हैं अथवा हमें यह विश्वास है कि हम वह काम नहीं कर सकते तो इन दोनों से जो भी विश्वास दृढ़तर होगा वही सच साबित होगा। हमारे पास कुछ करने की सारी योग्यता होने पर भी यदि हम यह सोचते हैं कि हम यह नहीं कर सकते, तो वह काम अमल में लाने वाले मस्तिष्क के सारे मार्ग बंद कर देते हैं। उसी तरह यदि हमें विश्वास है कि हम वह काम कर सकते हैं, तो उस काम को संभव बनाने के लिए आवश्यक सभी रास्ते हम स्वयं ही खोल देते हैं।
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