Skip to main content

Posts

Showing posts from 2023

एक कहानी धनी सेठ की ।

एक धनी सेठ अलग-अलग नगरों में जाकर व्यापार करता था, एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए वह नाव का उपयोग करता था, लेकिन उसे तैरना नहीं आता था, एक दिन वह नदी के रास्ते नाव में बैठकर.... एक प्रचलित कथा के अनुसार पुराने समय में एक सेठ बहुत धनी था। वह अलग-अलग नगरों में जाकर व्यापार करता था। एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए कई बार उसे नाव का उपयोग करना पड़ता था, लेकिन उसे तैरना नहीं आता था। एक दिन वह नदी के रास्ते नाव में बैठकर दूसरे नगर जा रहा था। नदी के बीच में उसने देखा कि उसकी नाव में पानी भरा रहा है। नाव में छेद हो गया था। वह डर गया। अब सेठ भगवान को याद करने लगा। तभी उसे एक मछवारे की नाव और दिखाई दी। सेठ ने मछवारे को आवाज लगाई और कहा कि भाई मेरी नाव डूब रही है, मुझे तैरना भी नहीं आता, अगर तुम मुझे बचा लो तो मैं तु्म्हें मेरी पूरी संपत्ति दे दूंगा। मछवारे ने उसे अपनी नाव में बैठा लिया। कुछ ही देर में साहूकार की नाव पूरी तरह पानी से डूब गई। मछवारे की नाव में बैठा सेठ कुछ सोच रहा था। वह मछवारे से बोला कि भाई अगर मैं तुम्हें मेरी पूरी संपत्ति दे दूंगा तो मेरी पत्नी ना
क्या है बर्बरीक कुंड की महिमा...?? भारत में एक ऐसा मंदिर है, जिसके रहस्य के बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया है, ये मंदिर देश से लेकर विदेश तक अपने कुंड के लिए मशहूर है।भारत में एक ऐसा मंदिर है, जिसके रहस्य (Secret) के बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया है, ये मंदिर देश से लेकर विदेश तक अपने कुंड के लिए मशहूर है, दरअसल इस मंदिर में एक ऐसा कुंड है जो हमेशा ही पानी से भरा रहता है, और इस कुण्ड में नहाने के लिए साल भर लोगों का तांता लगा रहता है,बर्बरीक कुंड यानि श्याम कुंड के बारे में, जो भारत के राजस्थान (Rajasthan) के जयपुर(Jaipur) में स्थित एक मशहूर मंदिर खाटू श्याम बाबा के मंदिर का हिस्सा है, खाटू वाले बाबा के मंदिर में स्थित ये कुंड अपने अंदर बहुत से रहस्यों को दबाए हुए है। बाबा श्याम के इस विख्यात मंदिर की कई मान्यताएं और कहानियां (Stories) है, बाबा के मंदिर में मौजूद ये कुंड अपनी उत्पत्ति को लेकर भी कई रहस्य छिपाए हुए है, कहा जाता है कि आज से हजारों साल पहले जब यहां केवल मिट्टी ही थी, तब यहां रोज गाय आया करती थी, और जानवर आया करते थे और इस स्थान पर पहुंचने के बाद ग

इतिहास में छुपाया गया एक सच ....वीर सावरकर जी ।

इतिहास में छुपाया गया एक सच ....वीर सावरकर जी । 45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आते हैं, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द होता है। अंग्रेज उससे दिन भर कोल्हू में बैल की जगह हाँकते हुए तेल पेरवाते हैं, रस्सी बटवाते हैं और छिलके कूटवाते हैं। वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा होता है, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता है और साथ ही दीवालों कर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा होता है। उसका नाम था- विनायक दामोदर सावरकर। उन्हें कई बार आत्महत्या के ख्याल आते। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह कोल्हू घुमाते रहो, रात को करवट बदलते रहो। 11 साल ऐसे ही बीते। कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे, उनके काम में मदद करते थे। सावरकर से अँग्रेज ब

एक नाग कि देवता बनने की कहानी

एक नाग एक मस्जिद के अंदर बिल में रहता था प्रतिदिन 06बार नमाज सुनता था प्रतिदिन की तकरीर भी ध्यान लगाकर सुनता रहता था एक दिन उसका मन हुआ नमाज की इतनी महिमा है तो नमाज मैं भी पढ़ लेता हूं शायद मुझे भी जन्नत मिल जाए, नाग एक दिन ठीक नमाज के समय बाहर निकल नमाजियों की लाइन में लगने चल पड़ा नमाजियों ने नाग देखा तो लाठी डंडे लेकर दौड़ा लिया अब नाग आगे-आगे नमाजी पीछे लाठी पत्थर लेकर, भागते-भागते नाग को एक पुराना सा मन्दिर दिख गया बेचारा वहीं घुसकर शिवलिंग से लिपट गया जान भी बच गई हिंदुओं ने जब शिवलिंग पर लिपटा नाग देखा तो शोर मच गया भीड़ जमा हो गई आरती पूजा शुरू हो गई हिंदु दूध पिलाने जुट गए नाग सोच रहा था कि मैं पहले कहां फंसा पड़ा था मैं तो नमाज पढ़ना चाहता था मुस्लिम तो मुझे जान से मारने जुट गए थे यहां तो सनातनी शिव मंदिर की शरण में दो घड़ी क्या आया यहां तो स्वयं नाग से शेषनाग बन गया यही अन्तर है इस्लाम और सनातन में नाग के हांथ पैर केवल नाग को दिखते हैं नाग के कान भी होते हैं जो नाग को ही दिखते हैं National Science Olympiad (NSO) Work Book for Class 5 - Quick Recap, MCQs

: कौन थे वीर सावरकर? जिनकी जयंती पर हो रहा नए संसद भवन का उद्घाटन, क्या है उनके चित्र से जुड़ा विवाद

कौन थे वीर सावरकर? जिनकी जयंती पर हो रहा नए संसद भवन का उद्घाटन, क्या है उनके चित्र से जुड़ा विवाद सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लन्दन में उसके विरुद्ध क्रांतिकारी आन्दोलन संगठित किया। वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1905 के बंग-भंग के बाद सन् 1906 में 'स्वदेशी' का नारा दिया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई। नया संसद भवन 28 मई 2023 को देशवासियों को समर्पित हो जाएगा। यह दिन आने वाली पीढ़ियों के लिए यादगार बना जाएगा और भारतीय इतिहास के पन्ने में 28 मई बेहद खास दिन बन जाएगा। मगर, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 28 मई को ही स्वातंत्र्य वीर सावरकार की जन्म जयंती भी है। वीर सावरकर की जयंती के अवसर पर ही नए संसद भवन का उद्घाटन किया जा रहा है। जानकारी के लिए बता दें कि इससे पहले पुराने संसद भवन में वीर सावरकर का तैल चित्र लगाने को लेकर विवाद हो चुका है। 28 मई 1883 को हुआ था वीर सावरकर का जन्म आपके लिए यह जानना जरूरी है कि आखिर वीर सावरकर कौन थे। सावरकर का

!! हार्ट अटैक !!

हार्ट अटैक !! हमारे देश भारत में 3000 साल पहले एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे. उनका नाम था महाऋषि वागवट जी उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है अष्टांग हृदयम (Astang hrudayam) और इस पुस्तक में उन्होंने बीमारियों को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखें थे यह उनमें से ही एक सूत्र है ! वागवट जी लिखते हैं कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है मतलब दिल की नलियों मे blockage होना शुरू हो रहा है ! तो इसका मतलब है कि रक्त (blood) में , acidity (अम्लता ) बढ़ी हुई है अम्लता आप समझते हैं ! जिसको अँग्रेजी में कहते हैं acidity अम्लता दो तरह की होती है एक होती है पेट की अम्लता और एक होती है रक्त (blood) की अम्लता आपके पेट में अम्लता जब बढ़ती है तो आप कहेंगे पेट में जलन सी हो रही है ! खट्टी खट्टी डकार आ रही हैं ! मुंह से पानी निकल रहा है ! और अगर ये अम्लता (acidity) और बढ़ जाये ! तो hyperacidity होगी ! और यही पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त में आती है तो रक्त

गहरा एकदम गहरा ज्ञान...

संकलन:- पंचतंत्र गहरा एकदम गहरा ज्ञान... 1नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे से कहता है मित्र "क्या तुम मुझे नदी पार करा सकते हो मेरे बिल में पानी भर गया है?? कछुवा राजी हो जाता है तथा चूहे को अपनी पीठ पर बैठा लेता है तभी 1 बिच्छु भी बिल से बाहर आता है।कहता है मुझे भी पार जाना है मुझे भी ले चलो, चूहा बोला मत बिठाओ ये जहरीला है ये मुझे काट लेगा। तभी समय की नजाकत को भांपकर बिच्छू बड़ी विनम्रता से कसम खाकर प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहता है:भाई कसम से नही काटूंगा बस मुझे भी ले चलो।" कछुआ चूहे और बिच्छू को ले तैरने लगता है। तभी बीच रास्ते मे बिच्छु चूहे को काट लेता है। चूहा चिल्लाकर कछुए से बोलता है”मित्र इसने मुझे काट लिया अब मैं नही बचूंगा।" थोड़ी देर बाद उस बिच्छू ने कछुवे को भी डंक मार दिया।कछुवा मजबूर था जब तक किनारे पहुंचा चूहा मर चुका था!! कछुआ बोला "मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया? बिच्छु उसकी पीठ से उतरकर जाते जाते बोला "मूर्ख तुम जानते नही

आओ खरगोश की अटखेलिया देखे।

क्या आप जानते हैं टेक ईजी लर्न फर्स्ट यूट्यूब चैनल के बारे में ये चैनल आप को रूबरू कर रहा है नन्हे खरगोश की मस्ती से और बचपन में हर किसी की इच्छा रहती है मैं खरगोश के साथ मस्ती करु| हम इस यूट्यूब चैनल पर देख ने वाले है हनीबन्नी नाम के दो खरगोश की मस्ती भरे वीडियो तो देर किस बात आज ही चैनल की सब्सक्राइब करे| Share on WhatsApp

रामधनुष टूटने की सत्य घटना......

रामधनुष टूटने की सत्य घटना...... बात 1880 के अक्टूबर नवम्बर की है बनारस की एक रामलीला मण्डली रामलीला खेलने तुलसी गांव आयी हुई थी... मण्डली में 22-24 कलाकार थे जो गांव के ही एक आदमी के यहाँ रुके थे वहीं सभी कलाकार रिहर्सल करते और खाना बनाते खाते थे...पण्डित कृपाराम दूबे उस रामलीला मण्डली के निर्देशक थे और हारमोनियम पर बैठ के मंच संचालन करते थे और फौजदार शर्मा साज-सज्जा और राम लीला से जुड़ी अन्य व्यवस्था देखते थे...एक दिन पूरी मण्डली बैठी थी और रिहर्सल चल रहा था तभी पण्डित कृपाराम दूबे ने फौजदार से कहा इस बार वो शिव धनुष हल्की और नरम लकड़ी की बनवाएं ताकि राम का पात्र निभा रहे 17 साल के युवक को परेशानी न हो पिछली बार धनुष तोड़ने में समय लग गया था... . इस बात पर फौजदार कुपित हो गया क्योंकि लीला की साज सज्जा और अन्य व्यवस्था वही देखता था और पिछला धनुष भी वही बनवाया था... इस बात को लेकर पण्डित जी और फौजदार में से कहा सुनी हो गया..फौजदार पण्डित जी से काफी नाराज था और पंडित जी से बदला लेने को सोच लिया था ...संयोग से अगले दिन सीता स्वयंवर और शिव धनुष भंग का मंचन होना था...फौजदार मण्डली

प्राचीन भारतवर्ष ( महाभारत कालीन)

प्राचीन भारतवर्ष ( महाभारत कालीन) महाभारत अनुसार में प्राग्ज्योतिष (असम), किंपुरुष (नेपाल), त्रिविष्टप (तिब्बत), हरिवर्ष (चीन), कश्मीर, अभिसार (राजौरी), दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकेय, गंधार, कम्बोज, वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध, सौवीर सौराष्ट्र समेत सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद महाभारत में वर्णित हैं, जो कि पूर्णतया आर्य थे या आर्य संस्कृति व भाषा से प्रभावित थे। इनमें से आभीर अहीर, तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य खापें विशेष उल्लेखनीय हैं। बाद में महाभारत के अनुसार भारत को मुख्‍यत: 16 जनपदों में स्थापित किया गया। जैन 'हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत में 18 महाराज्य थे। पालि साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ 'अंगुत्तरनिकाय' में भगवान बुद्ध से पहले 16 महाजनपदों का नामोल्लेख मिलता है। इन 16 जनपदों में से

पिप्पलाद ऋषि और शनिदेव

पिप्पलाद ऋषि और शनिदेव क्यों पीपल के वृक्ष की पूजामात्र से ही शनि देव का प्रकोप कम हो जाता है जब श्मशान घाट में महर्षि दधीचि के शरीर का अंतिम संस्कार किया जा रहा था। उनकी पत्नी अपने पति से वियोग सहन नहीं कर सकी और पास के एक विशाल पीपल के पेड़ के खोखले में 3 साल के लड़के को रखकर खुद ही चिता में बैठकर सती हो गई। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया, लेकिन पीपल के गड्ढे में रखा बालक भूख-प्यास से बिलखने लगा। जब कुछ नहीं मिला तो वह मटके में गिरे पीपल के पेड़ की कोठियों (फलों) को खाकर बड़ा होने लगा। कालांतर में पीपल के पत्ते और फल खाकर बच्चे की जान किसी तरह सुरक्षित रही। एक दिन देवर्षि नारद वहां से गुजरे। नारद ने बालक को पीपल के कोटर में देखा और उसका परिचय पूछा। नारद- बालक तुम कौन हो? बच्चा - वही तो मैं भी जानना चाहता हूँ। नारद - तुम्हारे पिता कौन हैं ? बच्चा - वही तो मैं जानना चाहता हूँ। तब नारद ने ध्यान से देखा। नारद ने आश्चर्य चकित होकर कहा कि हे बालक! आप महादानी महर्षि दधीचि के पुत्र हैं। आपके पिता की अस्थियों से वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय प

हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या हुआ..

हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या हुआ.. इतिहास से जो पन्ने हटा दिए गए हैं उन्हें वापस संकलित करना ही होगा क्यूंकि वही हिन्दू रेजिस्टेंस और शौर्य के प्रतीक हैं. इतिहास में तो ये भी नहीं पढ़ाया गया है कि हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पांच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है. ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है. क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना.. महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सिमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है. वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध , महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था. मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर अधिपत्य जमा सके. हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं. हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे..और कुछ ही समय में मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा , उदयपुर और आसप